Sunday 27 April 2014

ऐ मेरे प्यारे वतन - Ae Mere Pyaare Watan (Manna Dey)

Movie/Album: काबुलीवाला (1961)
Music By: सलिल चौधरी
Lyrics By: प्रेम धवन
Performed By: मन्ना डे
ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझपे दिल क़ुरबान
तू ही मेरी आरज़ू, तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान
तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस ज़ुबाँ को जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी, सबसे रंगीं तेरी शाम
तुझपे दिल...
माँ का दिल बन के कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको
उतना तड़पाता है तू
तुझपे दिल...
छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुंचे हैं हम
फिर भी है ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की क़सम
हम जहाँ पैदा हुए
उस जगह ही निकले दम
तुझपे दिल...

Saturday 26 April 2014

वीरों का कैसा हो बसंत (Veeron Ka Kaisa Ho Basant) - सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए हैं आदि अंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
गलबाँहें हों या हो कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
हल्दीघाटी के शिला खंड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

Wednesday 23 April 2014

पुष्प की अभिलाषा (Pushp Ki Abhilasha) - माखनलाल चतुर्वेदी ( Makhanlal Chaturvedi)

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।

Friday 11 April 2014

I miss the days

I miss the days, When my days used to start
with your sweet wish,
I miss the days, When I was never alone,
I miss the days, When I always have you to
share everything,
I miss the days, When you always be with me,
I miss the days, When my day ends with you,
I miss the days, When you heal my heart,
I miss the days,...

~Vishal Shankhavar

Monday 7 April 2014

The Great Youvraj Singh

प्रिय युवराज,
कल का मैच खत्म होने के बाद जब तुम
आसमान और जमीन को बारी-बारी देखते
हुए, कमजोर कदमों से पवेलियन की ओर बढ़
रहे थे तो मेरे दिमाग में कई तस्वीरें एक
क्रम से
दौड़ गईं. श्रीकांत वर्मा की एक
कविता है, केवल अशोक लौट रहा है और सब
कलिंग का पता पूछ रहे हैं/ केवल अशोक सिर
झुकाए हुए है और सब विजेता की तरह चल
रहे
हैं/ केवल अशोक के कानों में चीख गूंज
रही है/
केवल अशोक ने शस्त्र रख दिए हैं/ केवल
अशोक लड़ रहा था.
केवल युवराज लड़ रहा था. क्रिकेट के मैदान
पर नहीं, जेहनी तौर पर, अपने
ही लोगों से.
हाल-फिलहाल में युवी तुमने कुछ
नहीं जीता. पर टाइमलाइन पर
थोड़ा ही पीछे जाता हूं तो तुम्हें
उतना ही विजयी पाता हूं. तुम हमेशा एक
विनर, एक फाइटर रहे, पर कल तुम्हारे
मैदान
से वापस जाने में जो निराशा थी, उससे
लगा कि तुम अपने ही देश से हार गए हो.
तुम्हारे घर के बाहर हुए प्रदर्शन और
सोशल
मीडिया के प्रलाप की खबरें तुम तक
पहुंची होंगी. तुम्हें लगता होगा कि अपने
ही लोग तुम्हारे दुश्मन क्यों हो गए हैं.
सिर्फ एक दिन की गलती की वजह से, वह
भी उस खेल में जो अनिश्चितताओं से
भरा हुआ है.
युवी, मैं इस कृतघ्न देश के बर्ताव के लिए
तुमसे
माफी मांगना चाहता हूं. यह
थोड़ा सा स्वार्थी, काफी भुलक्कड़ और
क्रिकेट को लेकर प्रतिक्रियावादी मुल्क
है. यह उस दौर को भूल जाता है जब
प्रैक्टिस सेशन में खून की उल्टियां करते हुए
तुमने न जाने कितनी जीतों की बुनियाद
रखी थी. यह भूल जाता है जब अपने भीतर
पल रहे कैंसर के चलते तुम बीच मैदान पर
खांसने-हांफने लगते थे. यह भूल जाता है
कि देश को पहला टी-20 वर्ल्ड कप
जिताने वाले तुम ही थे. तुम्हीं थे जिसने एक
यूरोपीय तेज गेंदबाज की छह गेंदों पर छह
छक्के जड़कर भारतीय
दर्शकों को भी सीना फुलाने
का मौका मुहैया कराया था. एक
शाश्वत-सा भरोसा जगाया था.
2011 का वर्ल्ड कप भी हम भूल जाते हैं.
वही खिताब जिसे टीम इंडिया ने सचिन
को समर्पित किया, तुम्हारी ही बदौलत
ही हमें मिला. तुम ही थे 'मैन ऑफ द
टूर्नामेंट'. लेकिन तुम्हारी जीत
की तस्वीरों और आंकड़ों को फिर से याद
करने लिए शायद इस देश को गूगल
देवता की जरूरत है. अस्पताल में संघर्ष
की तुम्हारी वे तस्वीरें किसी कूड़ेदान
का हिस्सा हो गई हैं अब. उसके बाद
तुम्हारी उस चमत्कारिक वापसी को हमने
अंतरिक्ष में कहीं डंप कर दिया है शायद.
युवराज, मुझे कहने दो कि कल तुम यकीनन
बुरा खेले. पर तुम खलनायक
बनाया जाना डिजर्व नहीं करते हो.
तुम्हारे संघर्ष, सम्मान और प्रतिभा का मैं
कायल हूं और इसका सम्मान मेरे जेहन में
हमेशा रहेगा. युवी, तुम्हारा अज़्म अब
भी बुलंद है और तुम्हें पराये शोलों का डर
भी नहीं है. तुम्हें खतरा आतिश-ए-गुल से
ही है. वही गुल जिसे सींचने में तुमने
अपनी जिंदगी के कुछ बेशकीमती साल
लगा दिए.
पर इस निर्मम देश से रहम की अपील मत
करना तुम. यह वही देश है जो कहता है
कि वर्ल्ड कप जीतो न जीतो,
पाकिस्तान को हरा दो. इसके
क्रिकेटीय राष्ट्रवाद की तुष्टि ऐसे
ही होती है. यही कल
श्रीलंका का झंडा जला रहा था.
आईपीएल की धौंस दे रहा था.
रही बर्दाश्त की बात तो देख लेना कि मेरे
इस खत पर ही अभी तमाम लोग 'फूल'
बरसाने लगेंगे.
युवी तुम फाइटर हो, यकीन है
कि वापसी करोगे. बस इतना ही कहना है.
जोक्स के आगे भी दुनिया है. तुम
ही तो कहते थे कि जब तक बल्ला चल
रहा है,
तब तक ठाठ है. हमें उम्मीद है कि ठाठ
जल्द
ही सही रास्ते से वापस लौटेंगे. वी लव यू,
युवी...!!
(किसी ने काफी अच्छा लिखा है )

Tuesday 1 April 2014