Friday 27 March 2015

दुनिया का इतिहास पूछता

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दुनिया का इतिहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ है?
घर-घर में शुभ अग्नि जलाता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिन्दुस्तान हमारा।
शत-शत आघातों को सहकर,
जीवित हिन्दुस्तान हमारा।
जग के मस्तक पर रोली सा,
शोभित हिन्दुस्तान हमारा।
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(रचना-अटल बिहारी वाजपेयी )

Friday 6 March 2015

चाणक्य के १५ अमर वाक्य...

१ ) ➤ दूसरों की गलतियों से सीखो...
अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी...।

२ ) ➤ किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए...
सीधे वृक्ष और व्यक्ति ही पहले काटे जाते हैं...।

३ ) ➤ अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए...
वैसे दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए...।

४ ) ➤ हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है...
यह कड़वा सच है...।

५ ) ➤ कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो...
मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ...?
इसका क्या परिणाम होगा...?
क्या मैं सफल रहूँगा...?

६ ) ➤ भय को नजदीक न आने दो...
अगर यह नजदीक आये इस पर हमला कर दो...
यानी भय से भागो मत इसका सामना करो...

७ ) ➤ दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है...

८ ) ➤ काम का निष्पादन करो...
परिणाम से मत डरो...

९ ) ➤ सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है...
पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है...

१० ) ➤ ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है...
अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ...

११ ) ➤ व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं...

१२ ) ➤ ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ...
वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे...
समान स्तर के मित्र ही सुखदायक होते हैं...

१३ ) ➤ अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो...
छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो...
सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो...
आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है...

१४ ) ➤ अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है...

१५ ) ➤ शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य
दोनों ही कमजोर है।

रंगता कौन वसंत?

कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,
अंग-अंग फागुन रचा, साँसें हुई मृदंग।
धूप हँसी बदली हँसी, हँसी पलाशी शाम,
पहन मूँगिया कंठियाँ, टेसू हँसा ललाम।
कभी इत्र रूमाल दे, कभी फूल दे हाथ,
फागुन बरज़ोरी करे, करे चिरौरी साथ।
नखरीली सरसों हँसी, सुन अलसी की बात,
बूढ़ा पीपल खाँसता, आधी-आधी रात।
बरसाने की गूज़री, नंद-गाँव के ग्वाल,
दोनों के मन बो गया, फागुन कई सवाल।
इधर कशमकश प्रेम की, उधर प्रीत मगरूर,
जो भीगे वह जानता, फागुन के दस्तूर।
पृथ्वी, मौसम, वनस्पति, भौरे, तितली, धूप,
सब पर जादू कर गई, ये फागुन की धूल

Tuesday 3 March 2015

राधा - क्रिष्न

अति सुंदर कविता
एक बार जरुर पूरी पढ़े

स्वर्ग में विचरण
करते हुए
अचानक एक दुसरे के
सामने आ गए

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विचलित से
कृष्ण ,

प्रसन्नचित सी
राधा...

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कृष्ण सकपकाए,
राधा मुस्काई

इससे पहले कृष्ण
कुछ कहते
राधा बोल उठी
"कैसे हो द्वारकाधीश ?"

जो राधा उन्हें
कान्हा कान्हा
कह के बुलाती थी

उसके मुख से
द्वारकाधीश का
संबोधन
कृष्ण को
भीतर तक
घायल
कर गया
फिर भी किसी तरह
अपने आप को
संभाल लिया

.....और बोले राधा से
मै तो तुम्हारे लिए
आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश
मत कहो!

आओ बैठते है ....
कुछ मै अपनी कहता हूँ
कुछ तुम अपनी कहो

सच कहूँ राधा
जब जब भी
तुम्हारी याद
आती थी
इन आँखों से
आँसुओं की बुँदे
निकल आती थी

बोली राधा ,मेरे साथ
ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई
ना कोई आंसू बहा

क्यूंकि हम तुम्हे
कभी भूले ही कहाँ थे
जो तुम याद आते

इन आँखों में सदा
तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के
साथ निकल
ना जाओ
इसलिए रोते भी
नहीं थे

प्रेम के अलग होने पर
तुमने क्या खोया
इसका इक आइना
दिखाऊं आपको ?

कुछ कडवे सच ,
प्रश्न सुन पाओ तो
सुनाऊ?

कभी सोचा इस
तरक्की में तुम
कितने पिछड़ गए

यमुना के मीठे पानी
से जिंदगी शुरू की
और समुन्द्र के
खारे पानी तक
पहुच गए ?

एक ऊँगली पर
चलने वाले
सुदर्शन चक्र
पर भरोसा कर लिया
और दसों उँगलियों
पर चलने वाळी
बांसुरी को
भूल गए ?

कान्हा जब तुम
प्रेम से जुड़े थे तो ....
जो ऊँगली
गोवर्धन पर्वत
उठाकर लोगों को
विनाश से बचाती थी

प्रेम से अलग होने
पर वही ऊँगली
क्या क्या रंग
दिखाने लगी
सुदर्शन चक्र
उठाकर विनाश के
काम आने लगी

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कान्हा और
द्वारकाधीश में
क्या फर्क होता है
बताऊँ
कान्हा होते तो
तुम सुदामा के
घर जाते
सुदामा तुम्हारे घर
नहीं आता

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युद्ध में और प्रेम
में यही तो फर्क
होता है

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युद्ध में आप मिटाकर
जीतते हैं

और प्रेम में आप मिटकर
जीतते हैं

कान्हा प्रेम में
डूबा हुआ आदमी
दुखी तो रह सकता है
पर किसी को
दुःख नहीं देता

आप तो कई
कलाओं के स्वामी हो
स्वप्न दूर द्रष्टा हो
गीता जैसे ग्रन्थ
के दाता हो

पर आपने
क्या निर्णय किया
अपनी पूरी सेना
कौरवों को सौंप दी?
और अपने आपको
पांडवों के
साथ कर लिया

सेना तो आपकी
प्रजा थी
राजा तो पालक होता है
उसका रक्षक होता है

आप जैसा महा ज्ञानी
उस रथ को
चला रहा था
जिस पर बैठा
अर्जुन
आपकी प्रजा को ही
मार रहा था

आपनी प्रजा को
मरते देख
आपमें करूणा
नहीं जगी

क्यूंकि आप
प्रेम से शून्य
हो चुके थे

आज भी धरती
पर जाकर देखो
अपनी
द्वारकाधीश
वाळी छवि को

ढूंढते रह जाओगे

हर घर हर मंदिर में
मेरे साथ ही
खड़े नजर आओगे
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आज भी मै मानती हूँ
लोग गीता के ज्ञान
की बात करते हैं
उनके महत्व की
बात करते है

मगर धरती के लोग
युद्ध वाले
द्वारकाधीश.
पर नहीं
प्रेम वाले कान्हा
पर भरोसा करते हैं

गीता में मेरा
दूर दूर तक नाम
भी नहीं है
पर आज भी लोग
उसके समापन पर

" राधे राधे" करते है

अंतिम यात्रा

...
किसी शायर ने अंतिम यात्रा
का क्या खूब वर्णन किया है.....
   
था मैं नींद में और. 
मुझे इतना
सजाया जा रहा था....

बड़े प्यार से
मुझे नहलाया जा रहा
था....

ना जाने
था वो कौन सा अजब खेल
मेरे घर
में....

बच्चो की तरह मुझे
कंधे पर उठाया जा रहा
था....

था पास मेरा हर अपना
उस
वक़्त....

फिर भी मैं हर किसी के
मन
से
भुलाया जा रहा था...

जो कभी देखते
भी न थे मोहब्बत की
निगाहों
से....

उनके दिल से भी प्यार मुझ
पर
लुटाया जा रहा था...

मालूम नही क्यों
हैरान था हर कोई मुझे
सोते
हुए
देख कर....

जोर-जोर से रोकर मुझे
जगाया जा रहा था...

काँप उठी
मेरी रूह वो मंज़र
देख
कर....
.
जहाँ मुझे हमेशा के
लिए
सुलाया जा रहा था....
.
मोहब्बत की
इन्तहा थी जिन दिलों में
मेरे
लिए....
.
उन्हीं दिलों के हाथों,
आज मैं जलाया जा रहा था!!!

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    �� लाजवाब लाईनें��
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