Tuesday 18 November 2014

कुछ हिंदी फ़िल्मी गीत जो कुछ बीमारियों का वर्णन करते हैं:

गीत - जिया जले, जान जले, रात भर धुआं चले
बीमारी - बुखार
गीत - तड़प-तड़प के इस दिल से आह
निकलती रही
बीमारी - हार्ट अटैक
गीत - सुहानी रात ढल
चुकी है, न जाने तुम कब
आओगे
बीमारी - कब्ज़
गीत - बीड़ी जलाई ले जिगर से
पिया, जिगर म
बड़ी आग है
बीमारी - एसिडिटी
गीत - तुझमे रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ
बीमारी - मोतियाबिंद
गीत - तुझे याद न मेरी आई
किसी से अब
क्या कहना
बीमारी - यादाश्त कमज़ोर
गीत - मन डोले मेरा तन डोले
बीमारी - चक्कर आना
गीत - टिप-टिप बरसा पानी,
पानी ने आग लगाई
बीमारी - यूरिन इन्फेक्शन
गीत - जिया धड़क-धड़क जाये
बीमारी - उच्च रक्तचाप
गीत - हाय रे हाय नींद
नहीं आये
बीमारी - अनिद्रा
गीत - बताना भी नहीं आता,
छुपाना भी नहीं आता
बीमारी - बवासीर
और अंत में
गीत - लगी आज सावन की फिर
वो झड़ी है
बीमारी - दस्त

Wednesday 12 November 2014

सब्जीवाला लड़का

शाम का समय था। बच्चे सड़को पर खेल रहे थे। मैं अपने घर
में बैठा था और प्रसादजी की एक कहानी पढ़ रहा था।
कहानी खतम होने को आई थी कि मेरे कानों में आवाज़
पड़ी 'सब्जी ले लो सब्जी'। यूं तो इस तरह की आवाजें
तरकारी वाले प्राय: लागाते थे लेकिन ये आवाज़ कुछ अलग
थी। मैं किताब छोड़कर नीचे आ गया और इस आवाज़ के
मालिक को तलाशने लगा। मेरी नज़र सामने पड़ी एक
छोटा बालक तरकारी का ठेला धकाते हुए मेरी ओर बढ़
रहा था। बीच बीच में चिल्लाता जाता 'सब्जी ले
लो सब्जी'। उसकी उमर बारह या तेरह बरस से ज्यादा न
लगती थी। लड़का देखने में बहुत सुन्दर था उसके चेहरे से
मासूमियत टपक रही थी। उसे देखकर मेरे मन मैं अनगिनत
सवाल नाग की तरह फन फैलाने लगे।
वो अभी इतना छोटा था कि ठेलागाड़ी उससे धक भी न
पाती थी। उसे धकाने के लिए वो अपनी पूरी ताकत झोंक
देता था। जब लड़के
को ठेलागाड़ी मोड़नी होती थी तो वो उसे उठाने के लिए
पूरा झुक जाता था और अपने शरीर को पूरी तरह झोक
देता था।
वो मेरे पास आ गया और मेरे सामने ही आवाज़ लगाने लगा।
उसके बदन पर एक बहुत ही पतली सी सूती की बुशर्ट
पड़ी कुछ बटनों की जगह धागों ने ले रखी थी। जब
वो ठेला धकाता था तो उसके कूल्हें पतलूम के उधड़े हुए छेद
में से झंकाते थे। जब मैंने उसके पैरों पर नज़र
डाली तो देखा कि उसकी चप्पल बहुत ही छोटी थी। लड़के
की ऐड़ी चप्प्ल से बाहर निकल जाती थी। उसकी चप्पल
गल चुंकी थी और उनमें छेद पड़ गये थे। धूल मिट्टी और
पानी उन छेदों से पार निकल जाता होगा। फिर
वो ठेला धकाता हुआ मेरे सामने से निकल गया। कुछ समय
तक तो मैं उसे देखता रहा और फिर वो मेरी आंखों से ओझल
हो गया। लेकिन वो लड़का मेरे मन में बस चुका था। दरअसल
उस लड़के को देखकर मुझे भी अपने बचपन के दिन याद आ
गये थे। उस लड़के में मुझे अपना बचपन नज़र आने लगा था ।
अगले दिन मैं उसे लड़के का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर बाद
वो आता दिखा और मेरे सामने आकर रूक गया।
उसने मेरी ओर देखा और मासूमियत भरी आवाज़ में पूछा,
बाबूजी कुछ चाहिए क्या?
मुझे सब्ज़ी नहीं लेनी थी लेकिन फिर भी मैंने हां कर दी और
मुझे उससे बात करने का मौका मिल गया।
मैंने पूछा, तुम इतनी कम उमर में काम क्यों करते हों?
लड़के ने सीधे जवाब दिया, मेरे बाबा मर गये इसलिए।
मैंने दुख कि भावना प्रकट करते हुए पूछा,
तुम्हारी मां कहां है?
लड़का बोला, मेरी मां बीमार रहती है वो कुछ काम
नहीं कर सकती। इसलिए मैं काम करता हूं।
इतना कहकर लड़का बोला बाबूजी अब मैं चलता हूं
नहीं तो देर हो जाएगी। मैंने उससे बिना कोई मोल भाव
किये ही कुछ सब्जियां ले ली और वो चला गया।
इस खेलने कूदने की उम्र में वो लड़का एक परिपक्व पुरूष बन
चुका था और भला बुरा सब जानता था। जिस उम्र में बच्चे
पांच किलो भार भी न उठा पाते वो लड़का पचास
किलो का ठेला धकाता था। उस बालक को आवश्यकता ने
कितना मज़बूत और चतुर बना दिया था। मेरे मन में उस बालक
के प्रति साहनुभूति ने जन्म ले लिया था और मैंने मन ही मन
उसे अपना मित्र मान लिया था। मैं हर दिन उससे बिना मोल
भाव के सब्जिया खरीदने लगा। एक दिन मैं किसी काम से
बाहर चला गया और शाम को उस लड़के से न मिल सका।
जब मैं रात को घर लौट रहा था कि मेरी नज़र उस लड़के पर
पड़ी वो सड़क के किनारे सिर झुकाकर दुखी अवस्था में
बैठा था।
मैंने पूछा, क्या हुआ?
लड़के ने बहुत धीमी आवाज़ में बोला, बाबूजी आज सब्जी न
बिकी।
मैंने कहा, कोई बात नहीं कल बिक जाएगी।
लड़का बोला, अगर आज पैसे न मिले तो मैं मां की दवा न
खरीद सकूगां।
मैंने इतना सुना और मैं अपने बटुए से सौ सौ के दो नोट
निकालकर उसे देने लगा। लड़का स्वभिमान के साथ
बोला कि मैं भीख नहीं लेता बाबूजी। उसके ये बोलते
ही मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया और मैं अपने घर
चला गया। घर से होकर मैं वापस लड़के के पास गया।
वो अभी भी वहीं बैठा था और प्रतीक्षा कर
रहा था कि कोई उससे कुछ खरीद ले। मुझे फिर से देखकर
लड़का खड़ा हो गया और मैंने कहा कि घर में सब्जी नहीं है
कुछ दे दो। ये शब्द सुनते ही लड़के के चेहरे पर मुस्कान आ
गई। मैंने एक बहुत बड़ा झोला निकाला और उसमें
सब्जी भरने लगा कुछ ही समय में झोला भर गया। फिर मैंने
लड़के से पूछा कितने पैसे हुए? वह कुछ बोल न सका और
उसकी आँखों से आँसू निकल आए। वो मेरी चाल को समझ
गया था। उसे रोता देख मैंने उसे चुप किया और फिर
पूछा कितने पैसे? इस बार लड़के ने कहा बाबूजी तीन
सौ चालीस रूपये हुए। मैंने उसे पैसे दिए और कहा कि अब
तुम्हारा थोड़ा ही माल बचा है। अब तुम घर जाओ।
लड़का मुझे धन्यवाद बोलकर चला गया और मैं
भी ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आ गया।
इसी तरह समय बीतता गया और लड़का मुझसे घुल मिल
गया। मैं उससे रोज सब्ज़ी ले लेता था और मेरी मां मुझ पर
चिल्लाती कि तुम्हें भी सब्ज़ी की दुकान लगानी है क्या?
जो हर दिन झोला भर सब्ज़ी ले लेते हो। एक शाम मैं लड़के
का इंतज़ार कर रहा था। रात होने को आई थी। पर वो न
आया था। दूसरे दिन भी लड़का नहीं आया। इसी तरह चार
दिन बीत गये। मेरे मन में अनगिनत बुरे विचार आने लगे। मैंने
फैसला किया कि मैं लड़के को खोजूंगा। लेकिन कैसे? मैंने
तो उससे आज तक उसका नाम भी न पूछा था और
वो कंहा रहता है? ये पूछना तो मेरे लिये दूर की बात थी।
फिर भी मैं निकल पड़ा उसे खोजने के लिए। पहले तो मैं उस
नुक्कड़ पर गया। जंहा वो रात को खड़ा होता था। मैंने
कुछ दूसरे सब्जी वालो से पूछा तो सब ने कहा कि साब
वो तो तीन चार दिनों से आया ही नहीं। मैंने एक से
पूछा कि वो कंहा रहता है? कुछ पता है? उसने न में सिर
हिलाया। मुझे निराशा हाथ लगी और मैं घर आ गया। मैं घर
में सोच की मुद्रा में बैठा था।
मां ने पूछा, क्या हुआ?
मैंने कहा, कुछ नहीं।
मां ने कहा, मुझे पता है कि वो लड़का कंहा रहता है।
ये सुनते ही मैं उठ खड़ा हुआ। लेकिन मां को ये
कैसा पता चला कि मैं उस लड़के के लिए परेशान हूं।
महात्माओं ने सत्य ही कहा है कि मां सर्वोपरि है। वो पुत्र
की आंखों में देखकर उसकी बात समझ सकती है। मैंने झट से
मां से लड़के का पता लिया और लड़के की घर की ओर
लपका। कुछ देर की मेहनत के बाद मैं उसके घर पहुँच
ही गया। लड़के के पास घर के नाम पर मात्र टपरिया थी।
घास फूंस से बनी हुई जैसी गॉवों में बनी होती है।
लड़का मुझे बाहर ही दिख गया मुझे देखकर वो चौंक गया।
लड़का पूछता है, बाबूजी आप यंहा क्या कर कर रहें हैं?
मैंने उत्तर दिया, तुमसे मिलने आया हूं।
मैंने पूछा , तुम कुछ दिनों से आए क्यों नहीं?
लड़का बोला, बाबूजी मां बहुत बीमार है।
मैंने पूछा, कहां है तुम्हारी मां?
लड़का मुझे घर के भीतर ले गया। एक औरत मैली साड़ी में
नीचे पड़ी थी उसकी साड़ी कई जगह से फटी हुई थी।
कपडों के नाम पर वह चिथड़े लपटे थी। उसकी मां बहुत
बीमार थी। कुछ बोल भी न सकी। मैं बाहर निकल
आया और मैंने लड़के से पूछा कि तुम्हारे पास पैसे हैं। लड़के ने
हां में सिर हिलाया और फिर में घर आ गया। लड़के
की ऐसी हालात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया और
आधी रात तक उसके बारे में सोचता रहा। मुझे समझ आ
गया था कि क्यों वो लड़का पढ़ाई और खेलकूद त्याग कर
ठेला धकाता था।
लड़का कुछ दिन और न आया समय गुजरता गया। इतवार के
दिन दोपहर का समय था। गरमी इतनी भयंकर थी कि अगर
आंटे की लोई बेलकर धूप में रख दे तो सिककर रोटी बन
जाए। मुझे लड़के की आवाज़ सुनाई दी। मैं बाहर निकला।
गरमी बहुत तेज थी। मैंने पूछा तुम्हारी मां कैसी है?
लड़का बोला अब तो ठीक है। मुझे ख़ुशी हुई।
बातों ही बातों में मेरी नज़र उसके पैरों पर पड़ी वो नंगे पैर
था।
मैंने गुस्से से पूछा, तुम्हारी चप्पल कहां है?
लड़का डरते हुए बोला, बाबूजी टूट गई।
मैंने कहा, तो तुम ऐसे ही आ गये।
वो बोला, तो और क्या करता बाबूजी घर में पैसे नहीं हैं।
इसके बाद मैं कुछ न कह सका।
लड़का चला गया और नंगे पैर ही सब्जी बेचने लगा। कुछ
दिन बीत गये लेकिन उसे ऐसे नंगे पैर देख मुझे चैन न आता था।
वो भरी दोपहरी नंगे पैर ठैला धकाता उसकी हालात के बारे
में सोचकर मेरा मन विचलित हो जाता था। फिर मैंने
सोचा कि क्यों न मैं उसे एक जोड़ जूते ला दूं। लेकिन
तभी मुझे याद आया कि जिस तरह उसने पैसे लेने से मना कर
दिया था। यदि उसी प्रकार जूते लेने से भी न कह दिया तो।
बहुत चितंन के बाद आखिर मैंने उसके लिए जूते लाने का मन
बना ही लिया। झटपट तैयार होकर मैं बाज़र पहुंचा। मैंने
सोचा कि दौ सौ या तीन सौ रूपए के जूते लूंगा। फिर मैंने
सोचा कि ये जूते तो उस लड़के के पासे दौ महीने भी न
चलेगें। मैं पास ही जूतों के एक बहुत बड़े शोरूम में गया। मैंने
सेल्समेन से कहा कि कोई ऐसा जूता दिखाओ जिसे पहनकर
पहाड़ो पर चढा़ जा सके। उसने कहा आपके लिए। मैंने
कहा नहीं बारह साल के लड़के के लिए। उसने तुरंत एक
चमचमाता जूतों का जोड़ निकाला। ये बहुत मजबूत था और
सब्ज़ीवाले लड़के के लिए एकदम सही था। मैंने
वो जूता लिया और घर आ गया।
मैं शाम को लड़के की राह देखने लगा। लेकिन लड़का रात
होने पर भी नहीं आया। ऐसा तो नहीं कि आज वो पहले
ही आकर चला गया हो। मैं तुंरत नुक्कड़ की ओर बढ़ा।
लड़का वंहा बैठा हुआ था। मुझे देखकर
सहसा ही खड़ा हो गया। उसके पैर में अभी भी चप्पल
नहीं थी। जूते का थैला मेरे हाथ में लटका था और
लड़का बराबर उसकी ओर देखे जा रहा था। मैं ये सोचने
लगा कि लड़का खुद ही इस थैले के बारे में पूछेगा। लेकिन
उसने एक बारगी भी थैले के बारे में न पूछा। फिर मैंने खुद
ही उससे कहा कि मैं तुम्हारे लिये कुछ लाया हूं। ये सुनते
ही उसके मुख पर तिरस्कार की भावना आ गई। उसने हाथ
हिलाकर कहा कि मैं आपसे कुछ न लूंगा बाबूजी। बहुत
समझाने के बाद आखिरकार वो मान गया। मैंने फटाफट जूते
का डब्बा खोलकर उसे दिखाया। पहले तो वो खुश हुआ
लेकिन एकपल बाद ही उसकी आंख गीली हो गई। मेरे
समझाने पर उसने रोना बंद कर दिया। वो मुझे धन्यवाद
कहने लगा। उसने कम से कम मुझे दस बार धन्यवाद
कहा होगा। उसने जूते ले लिए और मैं घर आ गया। मैं बहुत
खुश था कि अब उसे नंगे पैर न घूमना पडे़गा। इसके बाद तीन
दिन तक मैं किसी कारणवश लड़के से मिल न सका। चौथे दिन
लड़का भरी दोपहरी में चिल्लाता हुआ आया। मैं उससे मिलने
बाहर निकला और सबसे पहले उसके पैरो को देखा। वो नंगे
पैर था।
मैंने उससे पूछा, तुम्हारे जूते कहां है?
लड़का चुपचाप खड़ा रहा और कुछ न बोला।
मैंने इस बार गुस्से से सवाल को दोहराया।
लड़का डरकर थोड़ा पीछे हट गया और नज़रे नीचे करके
बोला।
बाबूजी, मैंने जूते बेच दिये।
ये सुनते ही मैं आग बबूला हो गया और लड़के को दुनियाभर
की बातें सुनाने लगा।
मैंने पूछा, जूते क्यों बेचे?
लड़का बोला बाबूजी मेरी मां की साड़ी फट गई थी तो मैंने
वो जूते बेचकर अपनी मां के लिए साड़ी खरीद ली।
बाबूजी मैं कुछ दिन और नंगे पैर घूम सकता हूँ। लेकिन
मां की फटी साड़ी देखकर मुझे अच्छा न लगता था।
लड़का कहने लगा मुझे जूतों की इतनी आवश्यकता न थी।
जितनी कि मां के बदन पर साड़ी की।
उसकी ये बातें सुनकर मेरे सारे गुस्से पर पानी फिर गया और
उसके सामने मैं अपने आपको बहुत छोटा महसूस करने लगा।
उस लड़के के मुख से इतनी बड़ी बड़ी बातें सुन मैं अचंभित
हो गया। मुझे उस लड़के पर गर्व महसूस होने लगा। मैंने
देखा कि लड़का खुश था। उसके चेहरे पर मुस्कान
थी जो मैंने आज से पहले कभी न देखी थी। वो नंगे पैर
ही ठैला धकाता हुआ चला गया। मैंने जाते जाते उससे
पूछा बेटा तुम्हरा नाम क्या है? उसने हंसते हुए कहा संजय।

MJ The Best