Tuesday 6 October 2015

जानिए पूजा से जुड़ी विशेष बातें

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1. घर में पूजा करने वाला एक ही मूर्ति
की पूजा नहीं करे। अनेक(एक से
अधिक) देवी-देवताओं की पूजा करें। घर
में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर
तीन गणेश नहीं रखें।
हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार मुख्य पंचदेव हैं -
गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा व सूर्य.. समस्त शक्तियां व अवतार
इन पंच परमेश्वरों से ही प्रादुर्भूत होते हैं,
इसलिये इनका पूजन-अर्चन अवश्य ही किया जाना
चाहिये.
2. शालिग्राम विग्रह की आकृति जितनी
छोटी हो वह ज्यादा फलदायक है।
3. बाजार में कुश आसन मिल जाता है उससे कुश
ली जा सकती है.. कुशा
पवित्री के अभाव में सोने का तार या स्वर्ण
की अंगूठी धारण करके भी
देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।
4. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं।
पूजा में टूटे हुए अक्षत के टुकड़े नहीं चढ़ाना
चाहिए।
5. पुरुष के दाहिने हाथ में तथा स्त्रियों के बायें हाथ में
रक्षाबंधन किया जाता है।
6. पूजन के उपयोग के लिये प्रयुक्त पानी, दूध,
दही, घी आदि में अंगुली
नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से
लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो
जाती हैं अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य
नहीं रहती हैं।
7. तांबे के बरतन में दूध , दही या पंचामृत आदि को
नहीं डालना चाहिए क्योंकि धर्मग्रंथों के अनुसार वे
मदिरा समान हो त्याज्य हो जाते हैं।
8. आचमन तीन बार करने का विधान है। इससे
त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि
दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी वह आचमन
के तुल्य माना जाता है।
9. कुशा के अग्रभाग से देवताओं पर जल नहीं
छिड़के।
10. देवताओं को अंगूठे से नहीं मले। चकले पर से
चंदन लेकर कभी नहीं लगावें, उसे
छोटी कटोरी या बांयी
हथेली पर रखकर लगावें।
11. पुष्पों को बाल्टी , लोटा , जल में डालकर फिर
निकालकर नहीं चढ़ाना चाहिए, बल्कि हाथ में पुष्प
पकड़कर उपर से जल डालकर प्रक्षालित करे व चढाये।
12.भगवान के चरणों की चार बार , नाभि
की दो बार , मुख की एक बार या
तीन बार आरती उतारकर समस्त अंगों
की सात बार आरती उतारें।
13. भगवान की आरती समयानुसार जो
घंटा , नगाड़ा, झांझर , थाली , घड़ावल , शंख इत्यादि
बजते हैं उनकी ध्वनि से आसपास के वायुमण्डल
के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नाद ब्रह्म होता
है। नाद के समय एक स्वर से जो प्रतिध्वनि होती
हैं उसमे असीम शक्ति होती हैं।
14. लोहे के पात्र से भगवान को नैवेद्य अर्पित न करे।
15. हवन में अग्नि प्रज्वलित होने पर ही
आहुति दें। समिधा अंगूठे से अधिक मोटी
नहीं होनी चाहिए तथा दस अंगुल
लम्बी होनी चाहिए। छाल रहित या
कीड़े लगी हुई समिधा यज्ञ-कार्य में
वर्जित हैं।मुंह से फूंककर कभी हवन
की अग्नि प्रज्वलित न करें।
16. मेरूहीन माला या मेरू का लंघन करके माला
नहीं जपनी चाहिए। माला रूद्राक्ष ,
तुलसी एवं चंदन की उत्तम
मानी गई हैं। माला को अनामिका
(तीसरी अंगुली) पर रखकर
मध्यमा (दूसरी अंगुली) से चलाना
चाहिए।
17. जप करते समय सिर पर हाथ या वस्त्र नहीं
रखें। तिलक कराते समय सिर पर हाथ या वस्त्र रखना चाहिए।
माला का पूजन करके ही जप करना चाहिए।
ब्राह्मण को या द्विजाति को स्नान करके तिलक अवश्य लगाना
चाहिए।
18. जप करते हुए जल में स्थित व्यक्ति , दौड़ते हुए ,
शमशान से लौटते हुए व्यक्ति को नमस्कार करना वर्जित हैं।
बिना नमस्कार किए आशीर्वाद देना वर्जित हैं। एक
हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। सोए हुए
व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। बड़ों
को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से
और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें। जप
करते समय जीभ या होंठ को नहीं
हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुना
फलदायक होता हैं।
19. जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या
गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।
20. जप के बाद आसन के नीचे की
भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।
21. संक्रान्ति , द्वादशी , अमावस्या , पूर्णिमा ,
रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध
है।
22. दीपक से दीपक को
नही जलाना चाहिए।
23. यज्ञ , श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए,
सफेद तिल का नहीं। शनिवार को पीपल
पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात
परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,
किन्तु रविवार को परिक्रमा नहीं करनी
चाहिए।
24.भोजन व प्रसाद को लांघना नहीं चाहिए। देवता
की प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।
25. किसी को भी कोई वस्तु या दान-
दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।
26. एकादशी, अमावस्या, कृष्ण
चतुर्दशी , पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-
कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए।
27. बिना यज्ञोपवीत या शिखा बंधन के जो
भी कार्य , कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो
जाता हैं। यदि शिखा नहीं हो तो स्थान को स्पर्श
कर लेना चाहिए, संभव हो तो शिखा स्थान पर कुश या दूर्वा रखे।
28. शिवजी की जलहरी
उत्तराभिमुख रखें।
29. शंकर को बिल्वपत्र , विष्णु को तुलसी , गणेश
को दूर्वा , लक्ष्मी को कमल , दुर्गा को रक्तपुष्प
प्रिय हैं।
30. भगवान शंकर को शिवरात्रि के सिवाय कुंकुम
नहीं चढ़ती।
31. शिवजी को कुंद, विष्णु को धतूरा,
देवी को आक तथा मदार और सूर्य को तगर के फूल
नहीं चढ़ावे।
32. अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक
बार धोकर चढ़ावे।
33. नये बिल्वपत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए
बिल्वपत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।
34. विष्णु को चावल , गणेश को तुलसी , दुर्गा और
सूर्य को बिल्वपत्र नहीं चढ़ावें।
35. पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके
नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे
ही चढ़ावें। किंतु बिल्वपत्र उलटा करके
डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें। पान की
डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें। सड़ा हुआ पान या
पुष्प नहीं चढ़ावे।
36. गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ला
चतुर्थी को चढ़ती हैं।
37. पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी
नहीं होता हैं।
38. दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी
नहीं हो
39. सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को
दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न
करनी चाहिए।
40. पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही
पूजा करें।
41. पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी और घंटा , धूप
तथा दाहिनी ओर शंख , जलपात्र एवं पूजन
सामग्री रखें। घी का दीपक
अपने बांयी ओर तथा देवता के दाहिने ओर रखें एवं
चावल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

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